मैथिली किस्सा – गोनू झाक चमरछोंच

मिथिला-गोनू झा बड़ गूढ़ लोक छलाह। हुनका चीन्हब बड़ दुरूह काज छल। जिनगी पर्यन्त आ सभकेँ छकबिते रहलाह तेँ सम्पूर्णतामे ओ एक धूर्त पंडीजी रहथि से सभ मानैत रहनि आ ताही कारणे सभ हुनकासं साकाक्ष रहैत छल। के जानय, कखन कोन व्याजें कत छका बैसताह।

मैथिली किस्सा : गोनू झा बड़ गूढ़ लोक छलाह। हुनका चीन्हब बड़ दुरूह काज छल। जिनगी पर्यन्त आ सभकेँ छकबिते रहलाह तेँ सम्पूर्णतामे ओ एक धूर्त पंडीजी रहथि से सभ मानैत रहनि आ ताही कारणे सभ हुनकासं साकाक्ष रहैत छल। के जानय, कखन कोन व्याजें कत छका बैसताह।

एक बेरक गप्प छै। चैत – बैशाखक मॉस रहैक। सबेरे – सकाल निन्न टुटि जानि। निन्न टुटै़त देरी हुनका कथुक होश नहि रहनि-निछोहे दौड़थि पोखरि दिस। गोनू झा अपन एही आदतिसं तंग रहितो तंग नहि रहैत छलाह। आखिर दैनिक नित्य क्रियाक ई एक आवश्यक अंग थिक से बुझी निश्चित छलाह। एहि लेल ओतेक चिन्ता फिकिर नहि छलनि।

से ओहि दिन गोनू झाकेँ अहलभोरेमे निन्न टुटि गेलनि। ओ चट उठलाह आ अपन आदतिक अनुसार खाटक तरमे हथोरिया देलनि। लोटा निपत्ता छलनि। पत्नी पर क्रोध भेलनि जे लोटा रखनाइ कियक बिसरि गेलीह मुदा तात्कालिक स्थिति क्रोध अनबा योग्य नहि रहनि। निछोहे पड़यलाह पोखरिक भीड़ दिस। किछु कालक पश्चात होस भेलनि त छोंच करबाक चिन्ता धयलकनि। मुदा तुंरत मोन प्रफुल्लित भ उठलनि। आगुक पोखरिमे जल हुनक प्रतीक्षा क रहल छल। ओना बरहमसिया कब्जियत रहने स्वाभाविकतासं बेसी समय गोनू बाबूकेँ अपन एहि क्रियामे लागितहि छलनि, मुदा आइ बहुत कम्मे समयमे निवृत भ जयबाक तत्काल किछु अर्थ नहि लगलनि।

कने काल एहि त्वंचाहचमे समय बीति गेलनि मुदा एहि कार्य मे आर बेसी समय नष्ट करब उचित नहि बुझलनि। जखन गोनू झा छोंच करबाक लेल पोखरिक जलमे हाथ देलनि कि नजरि गेलनि अपन चमार पसारी पर जे हिनक ठीक विपरीत वला भीड़ पर नदी फीड़ी छोंच क रहल छल। गोनू झा एहि पर ध्यान नहि देलनि। छोंच करय लगलाह। गोनू झा छोंच करैत जाथि आ तरे आँखिये चमराकेँ देखितो जाथि। ओ निर्विकार भावे छोंच कयने जा रहल छल।

गोनू झा केँ जिद लागि गेलनि हमरा जकाँ ई कि छोंच करत। जांच क लिअ अपन एहि लूरिक। ओहि कात चमार भाइ सेहो सोचय जे गोनू की जे हमरेटा छोंच करय अबैय ओहो निर्विकार भावे छोंच करैत रहल। पल बितल, पहर बितल मुदा दुनू, दुनू दिससं उठबाक नामे नहि लेथि। आब दुनू गोटेक मोनसं जिदक स्थान गौण भ गेल रहनि। गोनू बाबू सोचथि जे हम पहिने उठि जाइत छी त ई चमरा हल्ला क देत जे गोनू बाबू हारि गेलाह ओमहर चमरा भाइ के सोचयि जे हम पहिने उठि जाइत छी त गोनू हल्ला करैत फिरताह जे आइ फलमाकेँ खूब छकाओल।

भोरसं दुपहर भेल। दुपहरसं साँझ भेल। मुदा दुनू छोंच करैत जाथि आ एक दोसरकेँ तरे आँखिये देखितो जाथि। ओहि बाटे हल्ला करैत गामक लोक जाइत – अबैत एहि लीलाकेँ देखथि जे आखिर की बात भ रहल छै। तखनहि गोनू झाक एक अपेक्षित ओहि बाटे जाइत छलाह। ओ जखन भोरमे गामसं जजमनिका लेल विदा भेल रहथि त गोनूकेँ छोंच करैत देखने रहथिन। मुदा एखन साँझमे जखन घुरि रहल रहथि त हुनका ओहि स्थितिमे देखलथिन। ओतहिसं टोकरा देलथिन – की हओ गोनू, आइ भोरसं कोन साधना मे लागल छह।

गोनू छोंच करितै उत्तर देलथिन – चमरछोंच मे पड़ल छी। देखै नहि छहक ओहि पार चमराकेँ। ओहि अपेक्षितक नजरि जखन ओहि पार गेलनि त देखलथिन जे चमरा भाइ अपन छोंचों करैत जाय आ चिकरि-चिकरि घरबाली केँ सेहो सोर करय जे’ भोजन एतै लेने आ छोंचक फेरमे पड़ल छिकी।’ ओ अपेक्षित ओत सं विदा भेलाह आ बाटे- घाट जे क्यो भेटथिन, सभकेँ एकेटा बात कहलनि जे गोनू चमरछोंचमे पड़ल छथि। आ गोनू झा हारि अन्तमे प्राण त्याग क देलनि।

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