मैथिली-किस्सा -गोनू झा रहथि दरबारी। अपन बुद्धि-विलाससं राजाकेँ प्रसन्न कयने रहैत छलाह आ पुरस्कार स्वरूप बेस धन – अर्जन क लैत छलाह। आ तेँ हुनका ओत चोरक खूब उपद्रव रहैत छल। एक बेर गोनू झा दुनू प्राणी घरमे सुतल छलाह। तखने चोरबा सभ सेन्ह काटि घरमे प्रवेश कयलक। देखलक जे एखन दुनू प्राणी आपसमे गप्प सप्प क रहल छथि। हुनका दुनूकेँ सुतबाक प्रतीक्षामे ओ सभ कोठीक पाछू नुकाक बैसि रहल आ दुनू प्राणीक गप्प सप्प सुन लागल।
गोनूक घरवाली गोनूसं कहलथिन जे आइ-काल्हि चोरक उपद्रव बड़ बढ़ी गेल अछि अहाँकेँ कहियासं कहैत छी जे कमसं कम गहना-गुड़ियाकेँ तं निजगुत ठाम राखि लितहूँ। गोनू झाकेँ घरमे चोरक आभास लागि गेल छलनि। ओ आस्वस्त होइत पत्नीसं कहलनि – अहाँ ऐ लय निश्चित रहू। हम तकर इन्तजाम क लेने छी। गोनू झा के पत्नी कहलखिन – त एखन धरि हमरा कहलहूँ नहि?
गोनू झा कहलखिन – ‘अरे, से कहबाक पलखति कत भेटैत रहय ततेक ने झंझटि सभमे बाझल रहैत छी जे…’ पत्नी पुछलखिन- ‘त कोन इन्तजाम कयलिऐ?’ गोनू झा कहलखिन – पहिने ई कहू जे अहाँ लग आर की सभ अछि?
गोनू झा के पत्नी कहलखिन – ‘हमरा लग आब आर की रहत छाउर!! जे किछु छल, सभ त अहीं के द देलहूँ। गोनू झा कहलखिन – त सुनू। हम सभटा गहना – गुड़िया के झोरी सभमे ध क पछुआड़ महक लताम – गाछ पर लटका देलहूँ अछि। पत्नी कहलखिन – तखन त चोरबा सभ….. गोनू झा कहलखिन -आयत त खसत मूँहे भरे। तेहन ठाम ने ध देलिये जे चोर की चोरक बापोक नजरि ओत नहि जयतै। दुनू प्राणी गप्प चोरबा सभ बड़ मनोयोगपूर्वक सुनैत छल। मोने – मोन ख़ुशी सेहो भ रहल छल। जखन दुनू प्राणी निसम्बद्ध भ गेलाह ओ सभ एक-दोसरसं संकेतमे गप्प कयलक आ सहें-सहें घरसं बहरा गेल।
चोरबा सभ बाहर जखन आयल त गोनू झाक बात सत्य प्रतीत भेलै। लतामक गाछ पर ठाम – ठाम झोरी लटकल देखलक। चोरबा सभ आव देखलक ने ताव, सभ छरपि गेल गाछ पर आ बाप-बाप करैत, गोनूक खानदानकेँ उखिलैत सभ बाहर निकलबाक प्रयास करैत रहल। मुदा लाख प्रयासक बादो गोबरक कुण्डसं नहि बहरा सकल।
छलै के तेहन विशाल ढ़ेरी जे…… भिनसरे जखन गोनू लोटा ल क नदी दिस जयबाक हेतु बहरयलाह त देखलनि जे चोरबा सभ अधमरु भेल गोबरमे कुहरि रहल अछि आ लतामक गाछ परक सभटा मधुमाछी, बिढ़नी – आ पचहिया ओकर सभक शरीरक विभिन्न अंग पर लुबधल छैक। गोनू झा चुटकी लैत पुछलथिन – की यौ चोर बाबू सभ। गाछ पर टांगल हमर झोरी सभ कत निपत्ता क देलहूँ? आ उत्तरक बिनु प्रतीक्षा कयने नदी दिस विदा भ गेलाह।