मैथिली किस्सा – गोनू झाक बिलाड़ी

मैथिली किस्सा – एक बेर राजाकें इच्छा भेलनि अत्यंत चतुर दरबारीक। एहि दृष्टिसं ओ दरबारी सभक एकटा बैसार आयोजित कयलनि। बैसारमे ओ कहलनि जे हमरा एकटा अत्यंत चतुर दरबारीक प्रयोजन अछि। ओकरा हम विचारकक रूपमे नियुक्त कर चाहैत छी, संगहि एहि विधायमे पारंगत व्यक्तिकें किछु बहुमूल्य उपहार देब चाहैत छी। हुनक एहि विचारकें सुनि सभ दरबारी अपन-अपन बुद्धि-चातुर्यक परिचय – देब लगलाह। मुदा राजा कोनहु दरबारीक चातुर्यसं संतुष्ट नहि भ सकलाह।

परिणामस्वरुप राजा बुद्धिक परीक्षाक लेल एक टा व्योंत निकाललनि आ कहलनि – ‘हम प्रत्येक दरबारीकें एक-एकटाक महींस आ एक-एकटाक बिलाड़ी देब जा रहल छी। सभ गोटे महींसक खूब सेवा करब आ ओकर दूध बिलाड़ीकें पिआयब। एक वर्षक बाद जिनकर बिलाड़ी स्वस्थ आ तन्दुरुस्त रहत हुनकहि हम अपन सलाहकार नियुक्त करब।’

सभ गोटे अपन-अपन जीव-जन्तु ल क प्रस्थान करैत गेलाह आ जीजान अरोपि महींस आ बिलाड़ीक सेवा कर लगलाह। गोनू झा सेहो किछु दिन महींसक सेवा कयलनि तथा ओकर दूध बिलाड़ीकें पिअओलनि। मुदा एक दिन हुनकर मोन मे भेलनि जे हमरा सं बूड़ी के अछि जे खून-पसीना एक क महींसकें पोसत आ ओकर दूध बिलाड़ीकें पिआओत। ओ एहि बात पर मंथन कयलनि का कोनो निजगुत व्याज बहार करबा लेल अपसियांत रहय लगलाह।

एही क्रममे एक दिन भिनसरू पहर महींस दुहलनि आ ओकरा बिलाड़ीकें देबाक बदला बथान तयान सं सोझे घर ल गेलाह। पत्नीकें कहलथिन जे एकरा नीक जकाँ औंटू। एम्हर बिलाड़ी गोनू झा क पाछू ‘म्याउ-म्याउ’ करैत चिनमार घारि ठेकि गेल। गोनू दया आबि गेलनि। तुरत एकटा बट्टा म एक ओरिका गर्म दूध ढ़ारिलनि आ ओकरा बिलाड़ी दिस बढ़ा देलनि। बिलाड़ी आंखि मूनि ओहि दूध पर टूटि पड़ल। चोट्टे निछोहे ओतासं पड़ायल। ओकर पूरा मुँह पाकि गेल छलैक।

एकर पशचात एहन स्थिति भेल जे दूधकें देखिते हुनकर बिलाड़ी एक लग्गी फटकी जा ठाड़ रहय लागल। जेना ओकरा दूध दिससं एक तरहे चीते उचटी गेलैक। एम्हर साल पुरल चलल गेल। गोनू झाक बिलाड़ी एकदम्मसं कांट – कांट भ गेलनि। ठीक समय पर सभ दरबारी राजाक सोझा हाजिर होइ़त गेलाह। राजा सभक बिलाड़ीक निरीक्षण कयलनि तथा ओकर स्वास्थ्य देखि प्रसन्न होइत गेलाह। मुदा सनटिटही भेल गोनू झाक बिलाड़ी देखि हुनका बड अजगुत भेलनि। एहि प्रसंग पर जखन गोनू झा सं प्रशन कयलनि तं ओ अपन सिथ्ती स्पष्ट करैत कहलथिन जे सरकार ई एहन अलच्छ अछि जे दूध देखि एक लग्गी पाछू पड़ा जाइत अछि।

राजाकें गोनू झाक बात पर सहसा बिश्वास नहि भेलनि। ओ एकर परीक्षा करब आवश्यक बुझलनि तथा तुंरत एतद् सम्बन्धी आदेश निर्गत कयलनि। एम्हर अन्य दरबारी सभ प्रसन्न। भने गोनू झा फसलाह। दूध अओतैक आ ओकरा बिलाड़ी पीबे करतैक तथा गोनू झा सोझे-सोझे फाँसी पर चढ़ी जयताह। मुदा परिणाम वैह भेल जकर बखान गोनू झा कयने रहथि। दूध देखैत देरी बिलाड़ी ओतसं निछोहे पड़ायल। राजा गोनू झाक बुधियारी पर छुब्ध रहि गेलाह हुनकर बुधियारीक मर्म बुझैत हुनका अपन विचारक नियुक्त क लेलनि तथा अन्य दरबारीकें मुर्ख बुझि दरबार सं बहार क देलनि।

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